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Friday, June 17, 2011

किसान आत्महत्या: एक कथा के रूप में....



हमारे विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग ने कल दो दिन की राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया है। जिसका विषय है किसानों की आत्महत्या इस विषय पर बात करने के लिए दूर--दूर से विद्वान आने वाले हैं। हमारे विभाग में कल से शुरू होने वाली संगोष्ठी की तैयारी बड़ी जोरों से चालू है। सभी अध्यापक और छात्र तैयारी में जुटे हुए हैं। मैं और मेरा दोस्त चंदू भी इस संगोष्ठी की तैयारी में मग्न है। सब तैयारी होने के बाद चंदू और मैं रूम पर आए और थोड़ी देर आराम करके कल होने वाली संगोष्ठी के बारे में गप्पे हांकते रहे। फिर मुझे याद आया कि हमने आज का अख़बार तो पढ़ा ही नहीं और फिर मैंने अखबार पढ़ना शुरू किया। पहले पन्ने पर नज़र गई तो देखा....... नारायण राणे ने फिर से आवाज़ उठाई........सानिया मिर्जा एशिया में नंबर वन......राज का राज मुंबई में बरकरार.... और अमिताभ बच्चन ने ऐश्वर्या के नाम पर खोला स्कूल.... आदि खबरें मुख्य पृष्ठ पर थीं। जिस पर सहज ही नजर जाती थी। मैंने अख़बार नीचे रखकर चंदू से कहा- यार चंदू आजकल अख़बार में ज्यादातर नेता, खिलाडी और अभिनेता इनके अलावा कुछ छपता ही नहीं। अखबार तो इन नेता लोगों के प्रचार-प्रसार का केंद्र बना हुआ हैं, हर एक पक्ष का अपना-अपना अखबार है। वह अपने पक्ष के बारे में अच्छा लिखेंगे और दूसरे पक्ष के नेता को अपने अख़बार में बुरा-भला कहेंगे।
मेरी बातें सुनकर चंदू भी कहने लगा-......अगर ये लोग अपने-अपने अख़बार में अपनी ही बात लिखेंगे तो हम जैसे आम लोगों की बातें..... हमारी समस्याएं...... हमारा दुख:दर्द कौन लिखेगा और वह किसमें छपेगा.....?
वह इतना कहकर रूक गया...... कि मैंने फिर से अखबार उठाया और पन्ने पलटने लगा कि अचानक एक कोने के छोटे से न्यूज पर मेरा ध्यान चला गया और मैं बहुत ही परेशान हो गया। मेरी परेशानी देख चंदू भी उठकर मेरे पास आ गया। और कहने लगा-........ क्या हुआ इतने परेशान क्यों हो..? मैंने उसकी ओर देखा और वह न्यूज जोर से पढ़ी .....तब थोड़ी देर में ही हमारे दोनों की आंखें नम हो गई। वह न्यूज ऐसी थी........ वाघाळवाडी गाँव के किसान ने अपना पेट ब्लेड से फाड़कर आत्महत्या की। उसने अपना पेट ब्लेड से फाडकर आंतडिया-वजड़िया बाहर निकाले और खून से लथपथ वह किसान ने अपने ही घर में खुद को समाप्त कर दिया। उसके लाश के पास ढेर सारा खून और वह ब्लेड मिली। उस किसान के घर जाकर जिले के मंत्री ने भेंट की और कहा-....... हम सरकार से झगड़कर इनके लिए 1 लाख रुपये का पैकेज मंजूर करवायेंगे। और मंत्री चले गये। उस किसान के पीछे दो लड़कियाँ और दो लड़के हैं। पूरे गांव में दुख का वातावरण छाया हुआ है।
वह न्यूज पढ़कर हम दोनों को बहुत बुरा लगा। उससे भी ज्यादा बुरा लगा कि इतनी बड़ी खबर इस न्यूज पेपर के छोटे से कोने में क्यों छपी इसे तो पहले पन्ने पर होनी चाहिए थी। मगर अफसोस आज के अखबार इन बड़े लोगों के जेब में ही होते हैं। तब चंदू कहने लगा-....... यह हमारे कल के संगोष्ठी के विषय के अनुकूल है। देखेगे कल इस विषय पर किस तरह चर्चा होती है। और थका हुआ होने के कारण चंदू सोने की तैयारी करने लगा। लेकिन ......मैं चिंतित था और उस किसान के बारे में सोच रहा था कि चंदू ने कहा.......अब सो जाओ यार काल सुबह बात करते है और सुबह जल्दी भी उठना है। और वह सो गया------। मगर मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैंने चंदू की ओर देखा तो चंदू आराम से खर्राटे ले रहा था। क्योंकि चंदू का किसानों से ज्यादा वास्ता नहीं था। वह मध्यवर्गीय था। मगर मैं उसी तबके से था जिस तबके में यह घटना घटी थी। इसलिए मेरे खयाल में हमेशा वह कोने की खबर ही आ रही थी। मैं उस किसान के बारे में सोचने लगा कि आखिर किसान ने ऐसा क्यों किया..? ऐसा क्या हुआ उसके साथ जो उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा..? ब्लेड से अपना पेट फाड़ते समय उसे कैसा लगा होगा..? आदि प्रश्नों को मैं छुड़ाने की कोशिश करने लगा------
तब अचानक मेरे सामने एक आदमी आकर खड़ा हुआ। मैं पहले तो घबराया फिर हौसला बांधकर मैंने उसका परिचय पूछा तब वह कहने लगा.....तुम जिस बात को लेकर परेशान हो वह बात मुझसे ही शुरू होती है। मेरा नाम भोला है। मैं ही वह किसान हूँ जिसने अपना पेट ब्लेड से फाड लिया था।
उसकी यह बातें सुनकर पलभर मैं घबरा गया और सोए हुए चंदू की ओर देखा तो वह घोड़े बेचकर सोया हुआ नजर अया। फिर मैंने साहस कर किसान से एक सवाल पूछा कि इतना बड़ा कदम आपने क्यों उठाया ? ऐसी कौन सी परेशानी या परिस्थिति थी जो आपने अपने-आपको इतने बुरे तरीके से खत्म किया ? आपने आत्महत्या क्यों की ? बताइये चुप क्यों हैं...? ऐसे कई सवाल मैंने किसान से किए। तब वह उसके उत्तर में कहने लगा- सबसे पहले तो मैं यह बता दूं कि मैंने अपने-आप को नहीं मारा। कोई भी साधारण आदमी इतनी बुरी तरीके से खुद को खत्म नहीं करता। मेरा खून हुआ है।
किसान की यह बात सुनकर मैं चकित रह गया। फिर मैंने कहा-..आपका खून हुआ है... बताईये आपका खून किसने किया... तब वह किसान कहने लगा परिस्थितियों ने मेरा खून किया है मैंने खुद हो के खुद को समाप्त नहीं किया बल्कि परिस्थितियों ने मुझे ऐसा करने पर विवश किया है। मेरे हाथों मेरा ही खून करवाया है।
मैं किसान की बातें सुनकर आश्चर्यचकित-सा उसकी की ओर देखने लगा। तब वह आगे कहने लगा है- मेरे पास बगैर पानी की साडे तीन बीघा जमीन थी। मेरे तीन बेटियां और दो बेटे थे... ऐसा कुल सात लोगों की हमारी गृहस्थी थी। जिसका उदरनिर्वाह खेती और मजदूरी से होता था। बच्चे स्कूल जाने लगे थे। इस प्रकार हमारी गृहस्थी ठीक-ठाक चल रही थी।
मैं किसान को एकटक देखने लगा और किसान शून्य में नजर गढाये बात करने लगा-.. आगे लड़कियों का स्कूल जाना बंद हो गया क्योंकि हमारे गांव में सातवीं तक ही स्कूल था और दूसरे गांव में लड़कियों को पढ़ने कैसे भेजे इसलिए उनका स्कूल जाना बंद हो गया। वह कभी मेरे साथ या कभी अपनी मां के साथ मजदूरी करने जाने लगीं। दोनों लड़के दूसरे गांव के स्कूल में भरती कर दिए गए। बरसात न होने के कारण खेत में ज्यादा कुछ पिकता भी नहीं था। इसलिए मैं और मेरी पत्नी शोभा दूसरों के खेतों में काम के लिए जाते और कभी-कभी लड़कियों को भी साथ ले जाते। मजदूरी से हम अपना घर और बेटों की पढ़ाई का खर्चा पूरा करते थे।
मैं कभी चंदू को देख लिया करता तो कभी उस किसान की ओर। किसान आगे कहता है.....अब ऐसे में बड़ी बेटी की शादी की बात चलने लगी। बड़ी बेटी के साथ-साथ उससे छोटी वाली लड़की भी शादी के लायक हो गई थी। बेटियों के शादी के बारे में हमने सोचा भी नहीं था और ना ही इनके शादियों के लिए पैसा जोड़ा था। गृहस्थी चलाने में ही पैसे बचते नहीं थे तो शादियों के लिए पैसा कहां से जोड़ा जाता। ऐसे में ही एक जगह से बड़े बेटी के लिए रिश्ता आया तब मैंने गांव के सेठ से शादी के लिए पैसा उधार लिया। मैंने सोचा इसबार बरसात अच्छी हुई तो पैसे लगे हाथ लौटा दूंगा। मगर बरसात ने साथ नहीं दिया। और सेठ पैसों के लिए परेशान करने लगा।
मैं किसान को कुछ इस प्रकार देखने लगा मानो यह सब मेरे ही आस-पास कही घटा हुआ हो। किसान आगे कहता है....ऐसे में ही मेरी पत्नी शोभा को केंसर हो गया और उसके इलाज के लिए सेठ से पैसे मांगने चला गया। तो सेठ ने कहा-.... पहले पैसे दिए नहीं और मुंह उठाकर दूसरे और पैसे मांगने चले आए.... उठ यहाँ से। ऐसा कहकर लात मारकर वहां से हकाल दिया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं तब गांव के पटेल से मैंने पैर पकड़कर पत्नी के इलाज के लिए पैसे लिए। इतने सारे पैसे खर्च करने पर भी और अच्छी तरीके से इलाज करने पर भी शोभा बच न सकी आखिरकार वह मर गई...... अब गांव में घूमना मुश्किल हो गया था। एक ओर सेठ तो दूसरी और पटेल पैसों के लिए परेशान करने लगे।
फिर अचानक चंदू ने खांसकर करवट बदल दी और मेरा ध्यान उसकी ओर चला गया। थोड़ी देर मैं चंदू की ओर देखकर फिर किसान की ओर देखने लगा। फिर किसान गुस्से से तिलमिला कर कहने लगा.....एक दिन सेठ और उसके दो आदमी खेत में आकर कहने लगे कि देखो भोला तुम्हें तो पता है तुमने अपनी बेटी के शादी के लिए मुझसे कर्जा लिया हुआ है। और अपने पत्नी के इलाज के लिए पटेल जी से भी कर्जा लिया है। अब इतना सारा कर्जा तो तुम चुका भी नहीं सकते क्योंकि खेत में कुछ पिका भी नहीं है और ऊपर से तुम्हारी दूसरी लड़की भी शादी को आई है। लेकिन भोला तुम उसकी शादी की चिंता न करो उसकी शादी की जिम्मेदारी मैं अपने सिर लेता हूँ और साथ ही पटेल का कर्जा भी दे देता हूँ। सेठ जी की यह बातें सुनकर मुझे बड़ा अच्छा लगा। मैंने सोचा चलो हम जैसे गरीबों के बारे में कोई सोचता तो है। फिर सेठ जी बोले .....क्या सोच रहे हो भोला। मैंने कहा कुछ नहीं सेठ जी आप तो हमारे भगवान हैं। सरकार आप नहीं सोचेगें तो कौन सोचेगा..... हमारे बारे में। सेठ जी कहने लगे- आज ही तुम्हारी बेटी की शादी के लिए पैसे और पटेल का लिया हुआ कर्जा दे दूंगा। ....ऐसा करो तुम अपनी बेटी को आज रात हवेली भेज दो।
तब जाकर मुझे उस दयावान आदमी की हैवानीयत समझ में आई। उसका मकसद मेरी मदद करना नहीं था बल्कि मेरी मजबूरी का फायदा उठाकर मेरी बेटी की इज्जत लूटना था। उसी वक्त मैं गुस्से में आकर सेठ को गालियां देने लगा। मैंने कहा अगर मेरी बेटी की तरफ आंख उठाकर भी देखा तो जान से मार दूंगा। इतना कहने पर सेठ भी धमकी देकर चला गया कि जल्द से जल्द मेरे पैसे सूद समेत वापस कर दो।...... मैं काफी परेशान हो गया था। मैंने सोचा सेठ को ऐसा नहीं कहना चाहिए था। अब सेठ को पैसे कहां से लाकर दूं। उस रात जोरों से वर्षा हुई। मैंने गांव के खाद के दुकान से बीज और खाद उधार ले लिया। खेत में मेहनत करने पर फसल भी अच्छी आई। जब फसल के कटाई का समय आया तो उसको निकालने को कोई भी मजदूर आने को तैयार नहीं था। वह पहले मजदूरी मांगता था और मेरे पास उनको देने के लिए फूटी कौडी भी नहीं थी। मुझे पता था कि यह सब चाल उस सेठ की है जो खेत में फसल अच्छी आने से जल रहा था।....... मैंने भी ठान लिया। फसल हाथ से जाने नहीं दूंगा। इसलिए मैंने और बच्चों ने मिलकर रात-दिन एक करके फसल निकाली और एक जगह गंज करके रख दी। और मशीन का इंतजार करने लगा।
तब मैंने किसान से कहा- चलो तुम अबकी बार इस फसल से इन सबका कर्जा चुका दोगे .......तो फिर तुमने ऐसा क्यों किया ?
फिर किसान शून्य में देखकर कहने लगा-.....एक दिन मैं घर में बैठे-बैठे ब्लेड से वायर छिल रहा था तो उतने में मोती वहां भागते हुए आया। मैंने कहा......क्यों? क्या हुआ मोती तुम इतना हांफ क्यों रहे हो.... तब वह कहने लगा भोलादास-.... भोलादास तुम्हारे खेत में आग लग गई है। यह सुनकर तो मेरे पैरों तले की जमीन हि खिसक गई। मेरा तो... जिन्दगी जीने का आखिरी सहारा भी खत्म होता हुआ नजर आ रहा था।
फिर मोती कहने लगा ....जल्दी करो दादा सब लोग खेत की ओर गये हैं .....जल्दी करो। हम लोग खेत की ओर दौड़े, दौड़ते-दौड़ते मैं सोचने लगा कि हो-ना-हो यह कम सेठ या पटेल का हि होगा ......जैसे-जैसे खेत नजदीक आ रहा था वैसे-वैसे मैं आपने पैरों को गति दे रहा था ..... खेत के धुवें के साथ-साथ आग कि लपटें भी आब हमें साफ नजर आ रही थी ..... जैसे हि हम वहाँ पहुँचे तो देखा गंज आग में जल रहा था। हमारे गंज के करीब से ही एक इलेक्ट्रिक वायर लाईन गई हुई थी जिसके टक्कर से शायद आग लग गई थी। और एक वायर निचे कि ओर लटक रहा था, मैं और भी परेशान हो गया........सोचा भगवान भी मेरी परीक्षा ले रहा है ..... आब यही देखना बाकि था उधर सब लोग आग को बुझाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे और इधर मैं घर की ओर चल पड़ा। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मुझे तो बस पैसे मांगते हुए नजर आ रहा था.... सेठ,... पटेल और नजर आ रहा था वह दुकानदार जिसने मुझे बीज उधार दिया था। और नजर आ रही थी सेठ की वहसी नजर जो मेरी बेटी पर थी। इस तरह से मैं घर कब पहुंचा मुझे पता नहीं।
सेठ, पटेल और दुकानदार का चेहरा मेरी नजरों के सामने आकर परेशान करने लगा था। मैं उनका प्रतिकार करने लगा,...... उन्हें अपने सामने से हटाने की कोशिश करने लगा। तभी.... उसी वक्त जमीन पर पड़ी ब्लेड मेरे हाथ लगी। मैं बड़ी जोश में ब्लेड से उनके चेहरे पर मारता रहा,..... उनका खून देखकर मुझे बहुत खुशी महसूस हो रही थी। उसी खुशी में मैं मारता चला गया। और धीरे-धीरे बेहोश हो गया।
वह किसान मेरी तरफ देखने लगा और कहने लगा-.......इस तरह से मैं परिस्थितियों का शिकार हुआ हूं। इसलिए तो कहता हूं मैंने आत्महत्या नहीं की बल्कि मेरा खून हुआ है।.......और वह मेरी तरफ देखने लगा। मैंने उसकी आंखों में अलग ही तेज देखा..... फिर उससे कहा-..... इन परिस्थितियों को रोकने के लिए क्या करना चाहिए ? बताईए ताकि आगे कोई किसान इस तरह से परिस्थितियों के चपेट में नहीं आए।
इतना कहने पर वह किसान कहने लगा-.....यह तो बताने मैं यहां आया हूँ। और वह कहने लगा-......जिस प्रकार से बड़े-बड़े अफसरों को वेतन आयोग मिलता है उसी प्रकार किसानों को नहीं मिलता, उन्हें भी यह आयोग मिलना जरूरी है।
किसान को आपातकालीन संकट के समय में पूरी सुरक्षा होनी चाहिए। यानी अस्मानी और सुल्तानी संकट से सुरक्षा होनी चाहिए।
हर किसान को कम ब्याज पर कर्जा आसानी से मिलना जरूरी है और अगर वह लौटाने की स्थिति में न हो तो उसका कर्जा थोड़ा माफ करना चाहिए।
खेत में ज्यादा समय बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। उसमें नियमितता होनी चाहिए।
जिस प्रकार किसी उत्पादक को उत्पादित वस्तु का भाव करने का अधिकार होता है ठीक उसी प्रकार किसान को भी अपने माल का भाव खुद तय करने का अधिकार होना चाहिए।
हर किसान के खेत की बीमा पॉलिसी निकलवा देनी चाहिए। और सरकार ने किसानों के हित के लिए निकाले हुए हर योजना पर ध्यान देना जरूरी है कि वह उन तक पहुंचती है या नहीं।.... आदि।
ये सारी बातें किसानों को इन परिस्थितियों का शिकार बनने से बचायेंगी।
किसान की बातें और सुझाव सुनकर मैं खुश हो गया और कहने लगा-......हमारे विभाग में कल एक संगोष्ठी है जिसका विषय है किसानों की आत्महत्या और वह विषय पर विचार प्रकट करने के लिए बहुत बड़े-बडे़ विद्वान आने वाले हैं. मैं उनके सामने ये सारी बातें रखूंगा। जिसकी वजह से सही मायने में किसानों की आत्महत्या रूक सके।.......... इतना सुनने पर किसान कहने लगा..... बेटा! तुम खूब पढ़ो और अपने नाम के समान तेजस्वी बनो। क्योंकि तुम जिस तबके से आये हो वहां के लोग तुमसे बहुत उम्मीद लगाए बैठे हैं कि तुम उनके लिए कुछ करोगे। तुम भी उन्हें नाराज मत होने देना। इतना कहकर वह किसान उसी अंधेरे में लुप्त हो गया जहाँ से वह आया था। और मैं कल होने वाली संगोष्ठी के बारे में और किसान ने दी हुई सलाह के बारे में सोचते हुए कहाँ खो गया वह पता नहीं...... शायद मैं कुछ सोच रहा था...... स्तब्ध था...... या शून्य........
लेकिन मेरे मन और मस्तिष्क पर जो धुंध छाई हुई थी वह किसी नई सुबह की शायद तलाश कर रही थी..........।


(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में पी.एच डी शोधार्थी हैं.)

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शेख अन्सारपाशा अब्दुल रज्जाक
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