निलेश झालटे.
युवा पत्रकार.
राजनिति के इस अंधकारमय दौर में महाराष्ट्र खासे प्रभावित राज्य के रूप में उभरकर आया हैं क्योंकि स्पष्ट है कि भारत की पूरी राजनिति में महाराष्ट्रिय राजनेताओं का काफी महत्त्वपूर्ण योगदान हैं भले ही वह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दृष्टी से हो और इन दोनों पहलूओंको उजागर करने में मीडिया भी उतना ही महत्त्वपूर्ण हैं. हाल के दिनों में खासकर मुंबई बमकांड के बाद महाराष्ट्र कि राजनिति और मीडिया का परस्पर अंतर्संबंध प्रभावशाली दिखाई दे रहा है. उस घटना से महाराष्ट्र की राजनिति में मीडिया की वजह से अनेक परिवर्तन हमें देखने को मिल रहें है. कई राजविलासियोंको अपनी कुर्सी छोडनी पड़ी थी.
बहरहाल हम यहाँ किसी एक पार्टी के नेता की बात बिलकुल भी नहीं कर रहें हैं प्रदेश में जितनी भी पार्टियां हैं कांग्रेस,राष्ट्रवादी कांग्रेस,शिवसेना,म.न.से. आदि सहित कईयों पार्टीयों के अनेक राजविलासी नेता मीडिया द्वारा अपनी आलोचना के बाद मीडिया पर शरसंधान करते हुए नजर आतें हैं. इसके तमाम उदाहरण है शिवसेना द्वारा निखिल वागले पर हमला हों या फिर राज ठाकरे का वार्ता से स्टूडियो से उठकर जाना हों जैसी तमाम घटनाएँ इनकी निष्क्रियता की मिसालें देतीं हैं. आज जब महाराष्ट्र के राजनिति में बदलाव की आंधी के बाद हम सामाजिक एवं आर्थिक या राजनितिक सुव्यवस्था के सपने देख रहें है तभी ‘पवारफुल’ नेता अजित पवार तथा विलासराव जैसे जर्जर नेता बार-बार ऊँगली उठातें नजर आ रहें है. आदर्श घोटालें के बाद अशोक चव्हाण को बड़ी शर्मिंदगी के साथ अपना इस्तीपा सौपना पडा उनके साथ छगनजी भी मीडिया को कोसते हुये निकल जानें के बाद नए पृथ्वीराज सरकार में कई बरसों से काकाजी के आशीर्वाद से पार्टी की कमान माने जानेवालें अजितदादा ने पदग्रहण किया और जिस मीडिया की वजह से पद मिला उसी मीडिया को डंडे से मारने की भाषा बोलने लगें. जब आम जनता अपनी समस्याओंको मीडिया के सामने प्रस्तुत कर रहीं थी तभी अपने समक्ष नेताजी अपनी निष्क्रियता को समाज के सामने वितरित होते हुये अचानक बौखला गयें और तब अपनी भड़ास वह मीडिया पर निकाल कर चले गए खुद को ही गुंडा करार देने वालें ऐसे राजनेता इस प्रकार से जनमत तैयार करने फिर भी क्यों सफल होतें है यह बात भी सोचनेलायक हैं. लेकिन इनके जनमत निर्धारण में इनके पुर्वजोंकी की पुण्याई भी महत्त्वपूर्ण है. अजितदादा का ही उदाहरण देख लिजियें जब दूसरी सभाओं में भाषण के समय कैमरे बंद होने लगें तब शरद काका ने मीडिया से माफ़ी मांगी. विलासराव की विलासिता तो अद्भुत है अपनी चंचलता के कारण बार-बार एक विभाग से दूसरें विभाग इनका स्थानांतरण होता रहता है यह बात अलग हैं की महाराष्ट्र की राजनीती में इनको महत्त्वपूर्ण स्थान हैं और अपने परिवार के साथ क्षेत्र विकास की अद्वितीय परिक्रमा के कारण भी ये काफी सम्मानित है लेकिन सारें पत्रकार को नशेडा करार देते हुये वह ये भी नहीं सोचतें की महाराष्ट्र पत्रकारिता का सम्मान ‘एकमत पुरस्कार’ वह अपनी माता के स्मरणार्थ पत्रकारों को देते है. हम यह बात समझ सकते हैं की नदी के तट पर बैठकर उस नदी की गहराई की चर्चा करने वालें कुछेक पत्रकार होंगे लेकिन उनका यह आरोप ९० फीसदी मीडिया के मन में क्षोभ प्रकट करता हैं.
महाराष्ट्र सहित सम्पूर्ण भारत में कई ऐसे राजनेता हैं जो अपनी आलोचना के बाद मीडिया पर प्रहार के मौके सूंघते रहते हैं. आज हम देखते हैं की पत्रकारों के ऊपर हमलों की घटनाओं में भी प्रमुखता से इन्ही राजनेताओं का हाथ होता है. अपनी सत्ता की साख बचाए रखने के लिए ये लोंग समाज से आ रहे हर प्रतिरोध को खत्म करना चाहते हैं लेकिन इन जैसे राजविलासी सत्ताधारियों को यह बात समझनी चाहिए कि मीडिया की सक्रियता की वजह से ही तमाम घोटालें सामने आ रहें हैं . लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया की वजह से ही देशवासी आश्वस्त हैं. मीडिया की निष्पक्षता और बेवाकी की वजह से ही लोकतंत्र कहलाने वाला यह देश थोडा सुरक्षित बचा हुआ है. आज की मीडिया गहराई में गोता लगाकर बकायदा तमाम तथ्यों को उजागर कर रहीं हैं. खोजी पत्रकारिता की वजह से भलेही नेताओं के मन में पैठ बढ़ रहीं हो वे मीडिया पर भड़ास निकाल रहें हो लेकिन इससे समाज नयें आश्चर्यजनक तथ्यों से अवगत हो रहा है. मीडिया अगर स्वतन्त्र और बेबाक नहीं होता तो आदर्श ,कॉमनवेल्थ गेम्स,२जी स्पेक्टर्म जैसे तमाम राजनेताओंके कालें करतूतोंवालें घोटालों का इतना खुलकर पर्दाफाश हो पाता. भलेही यह घटनाएँ राजनेताओंके के विरोधाभासी हैं और ये विरोध कर रहें है लेकिन राजनिति और सरकार से भी बहुत ऊँची साख जनता के नजरों में मीडिया की ही हैं.
सोचनेवाली बात तो यह है कि एक तरफ महामहिम राष्ट्रपति मीडिया को सामाजिक शिक्षक का दर्जा देती है और दूसरी तरफ यह राजनेता मीडिया कि बहस को तर्कसंगत और समाधानकारक जबाब देने की बजाय अपनी आलोचना बर्दाश्त न होने के कारण व्यर्थ अपनी बौखलाहट को दर्शाते रहतें है इससे तो यही लगता है की यहाँ के राजनिति पर मीडिया हावी हैं और ये राजनेता हैं की मीडिया को बार-बार दबोचने की नाकाम कोशिश करते रहते हैं.
युवा पत्रकार.
राजनिति के इस अंधकारमय दौर में महाराष्ट्र खासे प्रभावित राज्य के रूप में उभरकर आया हैं क्योंकि स्पष्ट है कि भारत की पूरी राजनिति में महाराष्ट्रिय राजनेताओं का काफी महत्त्वपूर्ण योगदान हैं भले ही वह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दृष्टी से हो और इन दोनों पहलूओंको उजागर करने में मीडिया भी उतना ही महत्त्वपूर्ण हैं. हाल के दिनों में खासकर मुंबई बमकांड के बाद महाराष्ट्र कि राजनिति और मीडिया का परस्पर अंतर्संबंध प्रभावशाली दिखाई दे रहा है. उस घटना से महाराष्ट्र की राजनिति में मीडिया की वजह से अनेक परिवर्तन हमें देखने को मिल रहें है. कई राजविलासियोंको अपनी कुर्सी छोडनी पड़ी थी.
बहरहाल हम यहाँ किसी एक पार्टी के नेता की बात बिलकुल भी नहीं कर रहें हैं प्रदेश में जितनी भी पार्टियां हैं कांग्रेस,राष्ट्रवादी कांग्रेस,शिवसेना,म.न.से. आदि सहित कईयों पार्टीयों के अनेक राजविलासी नेता मीडिया द्वारा अपनी आलोचना के बाद मीडिया पर शरसंधान करते हुए नजर आतें हैं. इसके तमाम उदाहरण है शिवसेना द्वारा निखिल वागले पर हमला हों या फिर राज ठाकरे का वार्ता से स्टूडियो से उठकर जाना हों जैसी तमाम घटनाएँ इनकी निष्क्रियता की मिसालें देतीं हैं. आज जब महाराष्ट्र के राजनिति में बदलाव की आंधी के बाद हम सामाजिक एवं आर्थिक या राजनितिक सुव्यवस्था के सपने देख रहें है तभी ‘पवारफुल’ नेता अजित पवार तथा विलासराव जैसे जर्जर नेता बार-बार ऊँगली उठातें नजर आ रहें है. आदर्श घोटालें के बाद अशोक चव्हाण को बड़ी शर्मिंदगी के साथ अपना इस्तीपा सौपना पडा उनके साथ छगनजी भी मीडिया को कोसते हुये निकल जानें के बाद नए पृथ्वीराज सरकार में कई बरसों से काकाजी के आशीर्वाद से पार्टी की कमान माने जानेवालें अजितदादा ने पदग्रहण किया और जिस मीडिया की वजह से पद मिला उसी मीडिया को डंडे से मारने की भाषा बोलने लगें. जब आम जनता अपनी समस्याओंको मीडिया के सामने प्रस्तुत कर रहीं थी तभी अपने समक्ष नेताजी अपनी निष्क्रियता को समाज के सामने वितरित होते हुये अचानक बौखला गयें और तब अपनी भड़ास वह मीडिया पर निकाल कर चले गए खुद को ही गुंडा करार देने वालें ऐसे राजनेता इस प्रकार से जनमत तैयार करने फिर भी क्यों सफल होतें है यह बात भी सोचनेलायक हैं. लेकिन इनके जनमत निर्धारण में इनके पुर्वजोंकी की पुण्याई भी महत्त्वपूर्ण है. अजितदादा का ही उदाहरण देख लिजियें जब दूसरी सभाओं में भाषण के समय कैमरे बंद होने लगें तब शरद काका ने मीडिया से माफ़ी मांगी. विलासराव की विलासिता तो अद्भुत है अपनी चंचलता के कारण बार-बार एक विभाग से दूसरें विभाग इनका स्थानांतरण होता रहता है यह बात अलग हैं की महाराष्ट्र की राजनीती में इनको महत्त्वपूर्ण स्थान हैं और अपने परिवार के साथ क्षेत्र विकास की अद्वितीय परिक्रमा के कारण भी ये काफी सम्मानित है लेकिन सारें पत्रकार को नशेडा करार देते हुये वह ये भी नहीं सोचतें की महाराष्ट्र पत्रकारिता का सम्मान ‘एकमत पुरस्कार’ वह अपनी माता के स्मरणार्थ पत्रकारों को देते है. हम यह बात समझ सकते हैं की नदी के तट पर बैठकर उस नदी की गहराई की चर्चा करने वालें कुछेक पत्रकार होंगे लेकिन उनका यह आरोप ९० फीसदी मीडिया के मन में क्षोभ प्रकट करता हैं.
महाराष्ट्र सहित सम्पूर्ण भारत में कई ऐसे राजनेता हैं जो अपनी आलोचना के बाद मीडिया पर प्रहार के मौके सूंघते रहते हैं. आज हम देखते हैं की पत्रकारों के ऊपर हमलों की घटनाओं में भी प्रमुखता से इन्ही राजनेताओं का हाथ होता है. अपनी सत्ता की साख बचाए रखने के लिए ये लोंग समाज से आ रहे हर प्रतिरोध को खत्म करना चाहते हैं लेकिन इन जैसे राजविलासी सत्ताधारियों को यह बात समझनी चाहिए कि मीडिया की सक्रियता की वजह से ही तमाम घोटालें सामने आ रहें हैं . लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया की वजह से ही देशवासी आश्वस्त हैं. मीडिया की निष्पक्षता और बेवाकी की वजह से ही लोकतंत्र कहलाने वाला यह देश थोडा सुरक्षित बचा हुआ है. आज की मीडिया गहराई में गोता लगाकर बकायदा तमाम तथ्यों को उजागर कर रहीं हैं. खोजी पत्रकारिता की वजह से भलेही नेताओं के मन में पैठ बढ़ रहीं हो वे मीडिया पर भड़ास निकाल रहें हो लेकिन इससे समाज नयें आश्चर्यजनक तथ्यों से अवगत हो रहा है. मीडिया अगर स्वतन्त्र और बेबाक नहीं होता तो आदर्श ,कॉमनवेल्थ गेम्स,२जी स्पेक्टर्म जैसे तमाम राजनेताओंके कालें करतूतोंवालें घोटालों का इतना खुलकर पर्दाफाश हो पाता. भलेही यह घटनाएँ राजनेताओंके के विरोधाभासी हैं और ये विरोध कर रहें है लेकिन राजनिति और सरकार से भी बहुत ऊँची साख जनता के नजरों में मीडिया की ही हैं.
सोचनेवाली बात तो यह है कि एक तरफ महामहिम राष्ट्रपति मीडिया को सामाजिक शिक्षक का दर्जा देती है और दूसरी तरफ यह राजनेता मीडिया कि बहस को तर्कसंगत और समाधानकारक जबाब देने की बजाय अपनी आलोचना बर्दाश्त न होने के कारण व्यर्थ अपनी बौखलाहट को दर्शाते रहतें है इससे तो यही लगता है की यहाँ के राजनिति पर मीडिया हावी हैं और ये राजनेता हैं की मीडिया को बार-बार दबोचने की नाकाम कोशिश करते रहते हैं.
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