-प्रदीप सिंह |
भूमंडलीकरण के बाद सब कुछ बदल गया है। रहन-सहन, संस्कृति, उद्योग अब तो राजनीति तक की दिशा-दशा को व्यापक पैमाने पर भूमंडलीकरण ने प्रभावित किया है। विज्ञापनों का मायाजाल पूरे समाज को अपने गिरफ्त में लिए हुए है। विज्ञापन का कारोबार आज हजारों करोड़ रुपए का है। मार्केट में टिकना आज विज्ञापन पर आधारित हो गया है।
वस्तु की गुणवत्ता से ज्यादा विज्ञापन की गुणवत्ता महत्वपूर्ण हो गयी है। आज से कुछ समय पहले तक कोई वस्तु या तो मौलिक होती थी, या कृत्रिम। तब आदमी अपनी खुली आंखों से वस्तु की अच्छाई-बुराई पहचान लेता था। आज तो खुलेआम यह कहा जा रहा है कि, ‘फैशन के इस दौर में गारंटी ना बाबा ना!’ विज्ञापन के इस दौर में अच्छे-बुरे को पहचानने का काम आसान नहीं रहा। जरूरत के अच्छे सामान को खरीदना बहुत बड़ी चुनौती बन गई है। आज हम उस सामान को भी खरीदने को बेबस हैं जिसकी हमें वास्तव में कोई जरूरत नहीं है।
आज उस सामान का बाजार में बोलबाला रहता है, जिसका विज्ञापन मशहूर सिने तारिका या मॉडल कर रही हो। कंपनियां अपना माल बेचने के लिए उत्पाद आने के पहले से ही प्रचार करने लगती हैं।
कुछ समय पहले तक हर शहर और कस्बे में कुछ मशहूर दुकानें होती थीं। जिसके यहां का सामान लोग आंख मूंद कर खरीदते थे। उन दुकानों की प्रसिद्धि के पीछे सामान की गुणवत्ता, शुद्धता और दुकानदार की ईमानदारी होती थी। आज के समय में व्यापार का यह तरीका पुराना पड़ गया है। विज्ञापनों की दुनिया ने सब कुछ उलट-पलट दिया है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अंधाधुंध विज्ञापन के जरिए बाजार पर अपना शिकंजा कस लिया है। किसी जमाने में उनके विज्ञापन अंग्रेजी में होते थे। लेकिन, अब उनके विज्ञापन स्थानीय भाषाओं में होते हैं। उनका प्रचार करने के लिए होते हैं, उस देश के सेलिब्रेटी, फिल्मकार और पढ़े लिखे लोग, जो रातों-रात अमीर बनना चाहते हैं। दृश्य माध्यमों विशेष रूप से टीवी धरावाहिकों और फिल्मों के नायक, नायिका अपनी लोकप्रियता और आकर्षण के बदले विज्ञापन कंपनियों से सौदा कर लेते हैं। कोई जूते का विज्ञापन कर रहा है तो कोई अन्य उपभोक्ता सामान का।
चमकते, दमकते नायक और इठलाती, बलखाती नायिका जब अपने गालों या बालों की खूबसूरती टीवी पर दिखाती हैं और सुंदरता का सारा राज किसी विशेष क्रीम को बताया जाता है तो जनता के दिमाग पर इसका बहुत गहरा असर होता है। लोग उत्पाद के गुण-दोष पर विचार करना भूल जाते हैं।
किसी भी उत्पाद को मार्केट में बेचने के लिए बकायदा तर्क तैयार किए जा रहे हैं। उसके फायदे बताए जा रहे हैं। आम आदमी को उस उत्पाद को खरीदने के लिए हर तरह से ललचाया जा रहा है। विज्ञापन अब एक उद्योग का रूप ले चुका है। उत्पाद का जो मूल्य होता है उसमें बहुत बड़ा भाग विज्ञापन का ही होता है। यह राशि औसतन दस से बीस प्रतिशत तक होती हैं। इस राशि में एक मोटा हिस्सा विज्ञापन करने वाले सितारों या सेलिब्रिटी का होता है।
ये वे लोग हैं जो जनता की नजर में नायक हैं लेकिन वास्तव में वे काम खलनायक का करते हैं। हाल ही में प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुनीता नारायण की संस्था ने देश में पीने के पानी और शीतल पेय पर एक अध्ययन किया। यह अध्ययन वैज्ञानिक तौर-तरीके से किया गया। इसमें निष्कर्ष निकला कि देश में इस समय जितनी शीतल पेय कंपनियां हैं, वे शुद्धता के मानकों को पूरा नहीं कर रही हैं। उनके द्वारा बनाया गया पेय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। देश के सत्ता प्रतिष्ठान से लेकर आम जनता तक में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। पूरे देश में उत्तेजना का माहौल बन गया। लेकिन तभी मामले को रफा-दफा करने की कोशिश भी की जाने लगी। पेप्सी और कोक के समर्थन में राजनेता आने से कतरा रहे थे।
ऐसी स्थिति में कुछ दिन के लिए समाजसेवक बने आमिर खान आगे आए। उन्होंने जहरीले पेय को फिर से जनता को पिलाने के लिए कमर कस ली। आमिर खान के बड़े-बड़े होल्डर और पोस्टर से बाजार रंग दिए गए। पेप्सी और कोक का बोतल पीते आमिर खान सारे आरोपों को पी गए। अपने आकर्षण से आम जनता को चमत्कृत करने वाले आमिर खान ने जनता को जहरीला पेय पीने से कोई हानि न होने की गारंटी दे दी। भोली जनता इसे मान भी गई और फिर से पेप्सी कोक के जाल में आ फंसी।
विज्ञापन करने में हमारे ‘महानायक’ अमिताभ बच्चन का बड़ा नाम है। अपनी लोकप्रियता के बदले में उपभोक्ता सामग्री को उसके वास्तविक मूल्य से अधिक में बिकवाकर स्वयं और उस उद्योग के मालिक के लिए वे दोनों हाथ से पैसा कमा रहे हैं। इसी के साथ वे उत्तर प्रदेश की सरकार का स्तुतिगान भी करते रहे। विगत दिनों में उत्तर प्रदेश की सरकार और राजनीति किन लोगों के हाथ में थी, यह सबको पता है।
अमिताभ बच्चन ने प्रदेश सरकार की वंदना में मध्यकालीन दरबारी चारण और भाटों को भी पीछे छोड़ दिया। ‘उत्तर प्रदेश में है दम! क्योंकि, यहां है अपराध सबसे कम।’ यह राजनीति के विज्ञापन का भौंडा नमूना है। शत्रुघन सिन्हा, धर्मेन्द्र , हेमामालिनी, विनोद खन्ना, जयाप्रदा, राजेश खन्ना, जया बच्चन, स्मृति इरानी, दारा सिंह अपनी चलचित्रीय छवि के प्रभाव में राजनीति का विज्ञापन कर रहे हैं। भूमंडलीकरण के शुरुआती दिनों में बड़ी तेजी से भारत की विश्व सुंदरिया चुनी गईं। यह सब भारत के विशाल बाजार को कब्जे में लेने की सोची-समझी चाल थी। ऐसे में हम पाते हैं कि भूमंडीकरण की ज्वाला में विज्ञापन का ही बोलबाला रह गया है।
अच्छे लेख के लिए आप को बधाई ,जारी रखे
ReplyDeleteसार्थक आलेख हर बात विचारणीय है...... बहुत बढ़िया
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