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Sunday, July 10, 2011

खेती की जमीन पर राज्य करें धंधा

पुण्य प्रसून बाजपेयी



Posted: 08 Jul 2011 10:29 PM PDT

"सरकार से कौन लड़ सकता है । पहले भी कुछ नहीं कर पाये और अब भी कुछ नहीं कर सकते। आमदार-खासदार तो दूर सरपंच भी धोखा दे गया तो किसे भला-बूरा कहें। अब सरकार ही दलाल हो जाये तो किसान की क्या बिसात । एक शास्त्री जी थे, जिन्होंने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था । उस वक्त देश पर संकट आया था तो पेट काट कर हमने भी सरकार को दान दिया था। मेरी बीबी ने उस समय अपने गहने भी दान कर दिये थे। लेकिन अब सरकार ही हमें लूट रही है। किसानी से भिखारी बन गये हैं। बेटा-बहू उसी जमीन पर दिहाड़ी करते हैं, जिस पर मेरा मालिकाना हक था। जिस जमीन पर मैने साठ पचास साल तक खेती की । परिवार को खुशहाल रखा। कभी कोई मुसीबत ना आने दी । सभी जानते थे कि जमीन है तो मेहनत से फसल उगा कर सर उठा कर जी सकते हैं। लेकिन सरकार ने तो अपनी गर्दन ही काट दी...."

एक सांस में सेवकराम झांडे ने अपने समूची त्रासदी को कह दिया और फकफका कर रोने लगे। बेटे, बहू, नाती पोतो के लिये यह ऐसा दर्द था कि किसी को कुछ समझ नहीं आया कि इस दर्द का वह इलाज कैसे करें । 72 साल के सेवकराम झाडे की जिन्दगी जिस जमीन पर अपने पिता और दादा के साथ खड़े होकर बीती और जिस जमीन के आसरे सेवकराम खुद पिता और दादा-नाना बन गये, उसी जमीन का टेंडर सरकार निकाल कर बेच रही है। असल में नागपुर में मिहान-सेज परियोजना के घेरे में 6397 हेक्टेयर जमीन आयी है और इस घेरे में करीब दो लाख किसानो के जीने के लाले पड़ गये हैं। क्योंकि महज डेढ लाख रुपये एकड़ मुआवजा दे कर सरकार ने सभी से जमीन ले ली है। लेकिन पहली बार एमएडीसी यानी महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेंट कों लिमिटेड की तरफ से अखबारों में विज्ञापन निकला कि 8 एकड जमीन 99 साल की लीज पर दी जा रही है। और विज्ञापन में जमीन का जो नक्शा छपा वह मिहान-सेज परियोजना के अंदर का है। और उसमें जिस जमीन के लिये टेंडर निकाला गया, असल में बीते सौ वर्षो से उस जमीन पर मालिकाना हक सेवकराम झाडे के परिवार का रहा है। एमएडीसी,वर्ल्ड ट्रेड सेंटर बिल्डिग, कफ परेड, मुबंई की तरफ से निकाले गये राष्ट्रीय अखबारो में अंग्रेजी में निकाले गये इस विज्ञापन को जब हमने सेवकराम को दिखाया और जानकारी हासिल करनी चाही कि आखिर उनकी जमीन अखबार के पन्नो पर टेंडर का नोटिस लिये कैसे छपी है, तो हमारे पैरों तले भी जमीन खिसक गयी कि सरकार और नेताओ का रुख इतनी खतरनाक कैसे हो सकता है।

विज्ञापन देखकर छलछलाये आंसुओ और भर्राये गले से सेवकराम ने बताया कि 2003 में पहली बार खापरी गांव के सरपंच केशव सोनटक्के ने गांववालो को बताया कि उनकी जमीन हवाई-अड्डे वाले ले रहे हैं। क्योंकि यही पर अंतर्राष्ट्रीय कारगो हब बनना है। साथ ही वायुसेना को भी इसमें जगह चाहिये होगी। इसलिये जमीन तो सभी की जायेगी। उसके कुछ महिनो बाद गांव में बीजेपी के आमदार चन्द्रशेखर बावनपुडे आये। उन्होने नागपुर के हवाई-अडड् की परियोजना की जानकारी देते हुये कहा कि गांववाले चिन्ता ना करें और उन्हें वह मोटा मुआवजा दिलवायेंगे। फिर 2004 में बीजेपी आमदार के साथ नागपुर के ही उस वक्त बीजेपी के प्रदेशअध्यक्ष नीतिन गडकरी आये। उन्होंने कहा कि जो मुआवजा मिल रहा है वह ले लें और, बाद में और मिल जायेगा। 2004 में ही चुनाव के वक्त कांग्रेस के खासदार विलास मुत्तेमवार भी गांव में आये और उन्होने भरोसा दिलाया कि कि मुआवजा अच्छा मिलेगा। सरकार ही जब देश के लिये योजना बना रही है और वायुसेना भी इससे जुड़ी है तो कोई कुछ नहीं कर सकता। क्योंकि सरकार देशहित में तो किसी की भी जमीन ले सकती है। और 2005 में खापरी गांव के तीन हजार से ज्यादा लोग जो जमीन पर टिके थे उनकी जमीन सरकार ने परियोजना के लिये ले ली।

खापरी गांव की कुल 426 हेक्टेयर जमीन परियोजना के लिये ली गयी। जिसमें सेवकराम झाडे और उनके भाई देवरावजी झाडे की 11 एकड जमीन भी सरकार ने ले ली। मुआवजे में सरकार ने एक लाख 40 हजार प्रति एकड के हिसाब से सेवकराम के परिवार को 14 लाख 35 हजार रुपये ही दिये। क्योंकि सरकारी नाप में 11 एकड जमीन सवा दस एकड़ हो गयी। लेकिन जमीन जाने के बाद सेवकराम के परिवार पर पहाड़ दूटा। भाई देवराजजी झाडे की मौत हो गयी। सेवकराम की बेटी शोभा विधवा हो गयी। दामाद की मौत इसलिये हुई क्योकि खेती की जमीन देखकर उसने सेवकराम के घर शादी की। जमीन छिनी तो समझ नही आया कि किसानी के अलावे क्या किया जाये। भरे-भूरे परिवार को कैसे संभाले, उसी चिन्ता में मौत हो गयी। सेवकराम के तीनो बेटो के सामने भी रोजी रोटी के लाले पड़ गये। छोटे बेटे विष्णु ने किराना की दुकान शुरु की। बीच वाले बेटे विजय ने दिहाडी मजदूरी करके परिवार का पेट पालना शुरु किया तो बडे बेटे वासुदेव को उसी मिहान योजना में काम मिल गया जिस योजना में उसकी अपनी जमीन चली गयी। घर की बहू और बडे बेटे की पत्नी सिंधुबाई ने भी मिहान में नौकरी पकड़ ली। तीनो बेटे और विधवा बेटी से सेवक राम को 12 नाती-पोते हैं। सभी कमाने निकलते है तो घर में खाना बन पाता है , जबकि पहले सेवकराम किसानी से ना सिर्फ अपने परिवार का पेटे पालते बल्कि शान से दूसरो की मदद भी करते। लेकिन जमीन जाने के बाद सेवकराम ने अपने परिवार का पेट पालने के लिये पशुधन भी बेचना पड़ा है। बीस भैस और नौ गाय बीते दो साल में बिक गयीं। एक दर्जन के करीब बकरिया भी बेचनी पड़ी। आज की तारीख में सेवकराम के घर में संपत्ति के नाम पर तीन साइकिल और एक गैस सिलिंडर है, जो 14 लाख 35 हजार मिले थे वह खर्च होते-होते 80 हजार बचे है। जबकि सेवकराम के भाई देवराजजी झांडे के परिवार की माली हालत और त्रासदीदायक है।

गांधी भक्त देवराजजी की मौत के बाद घर कैसे चले इस संकट में बडा बेटा शंकर दारु भट्टी में काम करने लगा है तो छोटा बेटा राजू नीम-हकीम हो गया । इसके अलावे तीन बेटियों की किसी तरह शादी हुई और फिलहाल परिवार में 15 नाती-पोतो समेत 23 लोग हैं, जिनकी रोटी रोटी के लिये हर समूचे परिवार को मर-मर कर जीना पड़ता है। आर्थिक हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि घर का कोई बच्चा स्कूल नहीं जाता। वहीं सेवकराम झाडे की जमीन पर निकले टेंडर फार्म की किमत ही लाख रुपये हैं। यानी जो भी टेंडर भरेगा उसे लाख रुपये वापस नहीं मिलेंगे। इस तरह की अलग अलग जमीन के टेंडर फार्म बेच कर महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेंट कारपोरेशन लि. ने पांच सौ करोड से ज्यादा बना लिये। जबकि राज्य की तरफ से कुल 35 हजार किसानों को सवा सौ करोड मुआवजे में निपटा दिया गया। यूं भी बीते दस बरस का सच महाराष्ट्र के किसानो के लिये कितना क्रूर साबित हुआ है, इसका अंदाज इसी से मिल सकता है कि करीब 78 लाख किसानों की जमीन सरकारी योजनाओ के नाम पर कॉरपोरेट या रियल इस्टेट वालो को दे दी गयी। किसानी पर टिके करीब दो करोड छोटे-किसान और मजदूर अपनी जमीन-घर से विस्थापित हो गये। सवा लाख किसानों ने खुदकुशी कर ली। औसतन विदर्भ, मराठवाडा और पश्चिम महाराष्ट्र में दिल्ली से सटे ग्रेटर नोयडा के किसानो की संख्या से पांच गुना ज्यादा किसान-मजदूर को जमीन से इसलिये बेदखल कर दिया गया क्योंकि देश के टाप कारपोरेट घरानों की योजनाओं के लिये जमीन चाहिये। और महाराष्ट्र में उसी कांग्रेस की सत्ता है, जिसका भविष्य राहुल गांधी के हाथ में है और वह दिल्ली से सटे यूपी में किसानों की जमीन का सवाल मुआवजे की थ्योरी तले उठा रहे हैं। लेकिन जमीन हड़पने वालों को अगर गिफ्ट देकर राज्य ही सम्मानित करने लगे तो क्या होगा। यह नागपुर के सेवकराम सरीखों की जमीन हड़पने वालो को देखकर समझा जा सकता है। मसलन खापरी गांव के सरपंच केशव सोनटक्के, जिनके कहने पर सेवकराम ने पहली हामी भरी थी, उसे हिंगना औघोगिक इलाके में 30 एकड माइनिंग का पट्टा फ्री में दे दिया गया। इसी तरह कुलकुही और तलहरा के 9625 परिवारों से 844 हेक्टेयर जमीन सरकार को दिलाने वाले सरपंच प्रमोद डेहनकर को भी 30 एकड माईनिंग का पट्टा फ्री में दिया गया। जबकि बीजेपी के नागपुर ग्रामीण क्षेत्र की नुमाइन्दगी करने वाले कामठी के आमदार चन्द्शेखर बावनपुडे के काले-पीले चिठ्ठे को संभालने वाले सुनील बोरकर को भी 30 एकड माइनिंग का पट्टा देने के अलावे सड़क और पुल के ठेके मिल गये। नागपुर से कांग्रेस के सासद के भी पौ बारह कई योजनाओं में करीबियो को ठेके दिलाकर हुये। और आखिरी सच यह है कि जिस सेवकराम को प्रति एकड एक लाख चालीस हजार रुपये दिये गये थे, उसकी कीमत मिहान परियोजना बनने के दौर में अभी 4 करोड रुपये एकड हो चुकी है क्योकि इस दौर में बीसीआई के नये स्टेडियम और पांच सितारा होटल से लेकर कारपोरेट घरानो का समूह वहां बैठ चुका है। इसलिये सरकार अब ऐसे घंघेबाज को जमीन देना चाहती है जो किसानो को दिये पचास करोड की एवज में 500 करोड बना ले। और मनमोहन इक्नामिक्स यही कहती है कि जिस धंधे में मुनाफा हो वही बाजार नीति और देश की नयी आर्थिक नीति है फिर अपराध कैसा।

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